(1)
सफलता की राह मे, गलतियों से ही अनुभव का, निर्माण होता है।
(2)
देखा हुआ सपना, सपना ही रह जाता है, जब तक उसे पूरा करने के लिए मेहनत ना की जाये।
(3)
ज़िन्दगी की मुश्किलों को, अपनों के बीच रख दीजिए, या तो अपने रखेंगे या फिर मुश्किलें रहेंगी।
(4)
कामयाबी की सीढ़ी चढ़कर, घमंड मत रखना मेरे दोस्त, क्योंकि जो सीढ़िया उप्पर की और जाती है, वो वापिस नीचे की और भी आती है।
(5)
जायदा ख्वाहिश मत रखिये ज़िन्दगी से, बस अगला कदम पिछले से बेहतर होना चाहिये।
जैसा की हम जानते है कि विवाह पारिवारिक जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग है। विवाह के सम्बन्ध में विधिक प्रावधान प्रयोज्य होते हैं और विवाह के पक्षकारों को सुरक्षा प्रदान करते हैं। सामान्यतः विवाह के पक्षकारों को विवाह उसी अनुसार करना चाहिए , जिस धर्म के विवाह प्रावधान विवाह के पक्षकारों पर प्रयोज्य होते हो। विशेष विवाह अधिनियम, 1872 भारत में सिविल विवाहों से सम्बन्धित प्रथम विधि विशेष विवाह अधिनियम, 1872 थी, जिसे ब्रिटिश शासन के दौरान स्वतंत्रतापूर्व युग के प्रथम विधि आयोग की अनुशंसा पर अधिनियमित किया गया था। प्रारंभ में इसे एक वैकल्पिक विधि के रूप में रखा गया था, जिसे केवल उन व्यक्तियों को उपलब्ध कराया गया था जो भारत की विभिन्न धार्मिक परम्पराओं में से किसी को नहीं मानते थे। हिन्दू, मुसलमान, क्रिशियन, सिख, बौद्ध, जैन और पारसी सभी इसके क्षेत्र से बाहर थे। अतः वे व्यक्ति जो इन समुदायों में से किसी से सम्बन्धित थे और इस अधिनियम के अधीन विवाह करना चाहते थे, उन्हें उस धर्म का, जो भी हो जिसे वे अपना रहे थे, त्याग करना पड़ता था। इस अधिनियम का मुख्य प्रयोजन अन्तरधार्मिक विवाहों को सुकर बनाना था। इस
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