पुछा जो मेने एक दिन खुदा से , अंदर मेरे यह कैसा शोर है , हंसा मुझ पर फिर बोला , चाहतें तेरी कुछ और थी , पर तेरा रास्ता कुछ और है , रूह को संभालना था तुझे , पर सूरत सवांरने में तेरा ज़ोर है , खुला आसमान , चाँद , तारे चाहत है तेरी , पर बंद दीवारों को सजाने पर तेरा ज़ोर है , सपने देखता है खुली फ़िज़ाओं के , पर बड़े शहरों में बसने की कोशिश पुरज़ोर है ,