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भारतीय न्याय संहिता, 2023मे महत्वपूर्ण नये प्रावधान

भारतीय न्याय संहिता, 2023 यानी  BNS मे महत्वपूर्ण नये प्रावधान रेप और पॉक्सो - बीएनएस 65 और 4 पॉक्सो (कम से 20 वर्ष की सजा या आजीवन कारावास, जुर्माना) हत्या- बीएनएस 103 (1)- मृत्युदंड या आजीवन कारावास।  मॉब लिंचिंग-  बीएनएस 103 (2)- पांच से अधिक लोगों का ग्रुप मिलकर जाति, धर्म, संप्रदाय, भाषा को लेकर हत्याएं करता है, ऐसे ग्रुप के हर एक सदस्य को दोष साबित होने पर मृत्युदंड या आजीवन कारावास की सजा। किडनैपिंग -  बीएनएस 137- कम से कम सात साल और इससे अधिक की सजा, जुर्माना भी फिरौती के लिए किडनैपिंग- बीएनएस 140 (2) मृत्युदंड और आजीवन कारावास की सजा।  स्नैचिंग-   बीएनएस 304 – कम से कम तीन साल की सजा और जुर्माना।  दंगा -  बीएनएस की धारा 189/190/191/192/324/117/57/61/3(5)- कम से कम 7 साल की सजा।  दहेज के लिए हत्या-   बीएनएस 80 (2) – कम से कम सात साल और अधिकतम आजीवन कारावास की सजा।  हत्या की कोशिश -  बीएनएस 109- मृत्युदंड या आजीवन कारावास।  पहले की FIR: FIRST INFORMATION REPORT (धारा 154 दंड प्रक्रिया संहिता के तहत) FIR: FIRST INFOR...

भारतीय न्याय संहिता, 2023 का उद्देश्य क्या है , इसकी क्या आवश्यकता थी.

भारतीय न्याय संहिता, 2023, जिसने भारतीय दंड संहिता का स्थान लिया है, इस लेख का उद्देश्य इस नए कानूनी ढांचे के अंतर्गत दंड से संबंधित प्रावधानों की विस्तृत व्याख्या प्रदान करना है। भारतीय न्याय संहिता, 2023, कठोर और सरल कारावास, जुर्माना और सामुदायिक सेवा के बीच संतुलन बनाए रखते हुए दंड के लिए एक व्यापक संरचना प्रस्तुत करती है। प्रावधान यह सुनिश्चित करते हैं कि दंड अपराध के अनुरूप हो, जबकि जुर्माना भुगतान में चूक और दंड भुगतान में चूक के लिए तंत्र प्रदान करते हैं, जिससे न्याय और सुधार के आधुनिक सिद्धांतों के साथ संरेखित होता है।* धारा 4: दंड के प्रकार भारतीय न्याय संहिता के तहत, अपराधियों को निम्नलिखित प्रकार के दंड दिए जा सकते हैं: 1. मृत्यु 2. आजीवन कारावास 3. कारावास, जिसे आगे वर्गीकृत किया गया है: a. कठोर श्रम के साथ कठोर कारावास b. साधारण कारावास 4. संपत्ति की जब्ती 5. जुर्माना 6. सामुदायिक सेवा सामुदायिक सेवा (Community Service) भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) को भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली में सुधार लाने और नागरिकों पर अधिक ध्यान केंद्रित करने के लिए बनाया गया था। यह भारतीय दंड...

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में हुए अहम बदलाव

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में हुए अहम बदलाव भारतीय दंड संहिता (CrPC) में 484 धाराएं थीं, जबकि  भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में531 धाराएं हैं. इसमें इलेक्ट्रॉनिक तरीके से ऑडियो-वीडियो के जरिए साक्ष्य जुटाने को अहमियत दी गई है.  नए कानून में किसी भी अपराध के लिए अधिकतम सजा काट चुके कैदियों को प्राइवेट बॉन्ड पर रिहा करने की व्यवस्था है. कोई भी नागरिक अपराध होने पर किसी भी थाने में जीरो एफआईआर दर्ज करा सकेगा. इसे 15 दिन के अंदर मूल जूरिडिक्शन, यानी जहां अपराध हुआ है, वाले क्षेत्र में भेजना होगा. सरकारी अधिकारी या पुलिस अधिकारी के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए संबंधित अथॉरिटी 120 दिनों के अंदर अनुमति देगी. यदि इजाजत नहीं दी गई तो उसे भी सेक्शन माना जाएगा. एफआईआर दर्ज होने के 90 दिनों के अंदर आरोप पत्र दायर करना जरूरी होगा. चार्जशीट दाखिल होने के बाद 60 दिन के अंदर अदालत को आरोप तय करने होंगे.  केस की सुनवाई पूरी होने के 30 दिन के अंदर अदालत को फैसला देना होगा. इसके बाद सात दिनों में फैसले की कॉपी उपलब्ध करानी होगी. हिरासत में लिए गए व्यक्ति के बारे में पुलिस को उसके परिवार को ...

रुकिए...क्या आप उदास है? चिंता न करे आप हमारा यह ब्लॉग पढ़े. प्रेरणादायक विचार जो बदलेंगे आपकी ज़िंदगी.

        हेलो दोस्तों क्या आप आज बहुत उदास हो और आपके मन में उलटे सीधे विचार आ रहे है तो दोस्तों उन्हें आप वही रोके और मेरा आज यह ब्लॉग पढे और अपने जीवन में कुछ सीखे और कुछ कर के दिखाए....इसके आप मेरा यह छोटा सा ब्लॉग एक बार जरूर पढ़े बस 5 मिनट भी नहीं लगेंगे तो देर किस बात की हो जाओ शुरू....😊😊   मेहनत इतनी करो की किस्मत भी तुम्हारा  साथ देने पर  मजबूर हो जाये.   सफल होना है तो,  खुद को बस में करो ,  दुसरो को नहीं.  ज़िन्दगी में अगर मुश्किल हालात  से लड़ना सिख लिया तो , यकीन मानो दोस्तों यह  आलोचना करने वाले लोग  भी आपका कुछ नहीं बिगाड़  सकते.  कभी उदास मत होना दोस्त ,  भले ही वजूद तेरा छोटा है ,  तू वो कर सकता है  जो किसी ने आज तक सोचा नहीं.  दोस्त यह ज़िंदगी तेरी ,यह सपने तेरे ,  यह मेहनत तेरी और यह हार जीत भी तेरी और तो और यह मंजिल भी तेरी ,  फिर यह दो कोड़ी के लोगो की बाते सुनकर हार जाना यह कोन सा नाटक है भाई.  सुनो दोस्त यह अच्छे वक्त को  देखने के लिए  ब...

विशेष विवाह अधिनियम 1954 , एक सामान्य परिचय. The Special Marriage Act-1954

जैसा की हम जानते है कि  विवाह पारिवारिक जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग है। विवाह के सम्बन्ध में विधिक प्रावधान प्रयोज्य होते हैं और विवाह के पक्षकारों को सुरक्षा प्रदान करते हैं। सामान्यतः विवाह के पक्षकारों को विवाह उसी अनुसार करना चाहिए , जिस धर्म के विवाह प्रावधान विवाह के पक्षकारों पर प्रयोज्य होते हो। विशेष विवाह अधिनियम, 1872 भारत में सिविल विवाहों से सम्बन्धित प्रथम विधि विशेष विवाह अधिनियम, 1872 थी, जिसे ब्रिटिश शासन के दौरान स्वतंत्रतापूर्व युग के प्रथम विधि आयोग की अनुशंसा पर अधिनियमित किया गया था। प्रारंभ में इसे एक वैकल्पिक विधि के रूप में रखा गया था, जिसे केवल उन व्यक्तियों को उपलब्ध कराया गया था जो भारत की विभिन्न धार्मिक परम्पराओं में से किसी को नहीं मानते थे। हिन्दू, मुसलमान, क्रिशियन, सिख, बौद्ध, जैन और पारसी सभी इसके क्षेत्र से बाहर थे। अतः वे व्यक्ति जो इन समुदायों में से किसी से सम्बन्धित थे और इस अधिनियम के अधीन विवाह करना चाहते थे, उन्हें उस धर्म का, जो भी हो जिसे वे अपना रहे थे, त्याग करना पड़ता था। इस अधिनियम का मुख्य प्रयोजन अन्तरधार्मिक विवाहों को सुकर बनाना था...

प्रदीप कुमार वि. छत्तीसगढ़ राज्य//

प्रदीप कुमार वि. छत्तीसगढ़ राज्य [2018 की आपराधिक अपील संख्या 1304] संजय करोल, जे. 1. दिनांक 01.10.2003 को जिला धौरपुर पुलिस थाना क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले ग्राम चितरपुर निवासी उमेश चौधरी की कथित रूप से हत्या अभियुक्त प्रदीप कुमार (2004 की सीआरए संख्या 940 में अपीलार्थी संख्या 2) द्वारा छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के समक्ष की गयी थी. , बिलासपुर एवं भैंसा उर्फ नंदलाल (अपीलार्थी संख्या 1. उच्च न्यायालय के समक्ष इसी अपील में) जिसके संबंध में थाना धौरपुर में प्राथमिकी संख्या 126/03 (Ex.P-6) दर्ज की गई थी। 2. 02.10.2003 को, जांच अधिकारी, आई. तिर्की (पीडब्लू-19) ने जांच शुरू की और घटना के स्थान की पुष्टि करने के बाद मृत शरीर को पोस्ट-मॉर्टम विश्लेषण के लिए भेज दिया, जो डॉ. कमलेश कुमार (पीडब्लू-14) द्वारा आयोजित किया गया था। उनकी रिपोर्ट की शर्तें (Ex.P-10)। जांच से पता चला कि अपराध दुश्मनी के कारण किया गया था जिसे अपीलकर्ता मृतक के खिलाफ आश्रय दे रहा था। मकसद ग्राम चितरपुर में मृतक के कब्जे वाली दुकान का उपयोग करने की पूर्व इच्छा थी। 3. विचारण न्यायालय, रामकृपाल सोनी (असा-1) और गोपाल यादव (असा...